आओ हम सब शिवरात्रि पर्व मनायें
वैश्विक चेतना की गूँज ब्रह्माण्ड में प्रतिनिधित्व व प्रदर्शित करती है जो एक से अनेक रूपों में मौजूद हैं । इस प्रकार वैश्विक चेतना का व्यक्तिगत चेतना में रूपान्तरण होता हैं ।
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जैसा कि श्रद्धेय गुरुजी कहते है "एक में सब व सब में एक"
शिव का अर्थ हैं प्रकाश व चेतना, शिव सार है उस ध्वनि का जो प्रकाश, जीवन तथा प्रत्येक वस्तु को आकार प्रदान करता है। रात्रि अंधकार, दुःख व परेशानी का अज्ञान है। अतः यह शिव का प्रकाश है जो प्रत्येक परमाणु में व प्रत्येक जीव में जीवन को जागृत करता है । ब्रह्माण्ड की इस शक्ति व उर्जा का पक्ष जो शिव से एकाकार हो जाता है । यह एक शुद्ध व जाग्रत चेतना है जो कि करोड़ो सूर्यो की चमक के समान हैं।
शिवरात्रि के पूरे माह के दौरान सभी जीवों पर सकारात्मक उर्जा का प्रभाव रहता है । वे जो ईश्वर की तलाश व शुद्ध चेतना पाना चाहते हैं आसानी से ऐसा कर सकते हैं और वो शुद्ध स्पष्ट विचार उनके हृदय में प्रसन्नता और अधिक संतुष्टि के साथ भर जायेंगें।
भक्तगण व साधक जो इसे समझते है, वे इससे विशेष आध्यात्मिक विकास का अनुभव कर सकते है। यह समय सर्वशक्तिमान स्वयंभू सदाशिव जो हमेशा सब की इच्छाएं पूर्ण करता है, द्वारा आशीर्वाद प्राप्त है।
एक शिष्य शिवरात्रि के समय में धनात्मक विचारों का संग्रह व ऋणात्मक विचार जैसे घृणा, ईर्ष्या, लालच और स्वार्थ का त्याग करता है।
देवों के देव महादेव स्वयंभू (शिव) प्रथम व देवों के महानतम देव है । उन्होने सभी जीवों के पाप कर्मों का शुद्धिकरण करने के लिए विष पीया, न सिर्फ उनके लिए जो उनमें विश्वास करते है बल्कि सभी जीवों के लिए, विष हमारे पापों का प्रतीक है । उनके व उनकी कृपा के द्वारा सभी जीव सर्वोच्च ब्रह्म चेतना की अवस्था में प्रवेश कर सकते है । उनकी चेतना का प्रकाश प्रत्येक परमाणु, सम्पूर्ण प्रकृति व पृथ्वी पर है ।
वे सम्पूर्ण सृष्टि का पोषण करते है, नियन्त्रण करते है, गतिमान रखते है, नकारात्मक व आसुरी शक्तियों को शान्त रखते हैं।
अपने शरीर, मन, आत्मा, विचारों, चेतना को शुद्ध रखने के लिए शिव का ध्यान करें ताकि आपकी जीवात्मा ब्रह्माण्ड के अद्भुत नीले लोकों में नृत्य कर सके ।
अपनी व्यक्तिगत चेतना को ब्रह्म चेतना में एकाकार होने दे ताकि आत्मशक्ति पा सके ।
मेरी शुभकामनाएँ व दिव्य आशीर्वाद, महाशिवरात्रि के अवसर पर श्री देवपुरी जी के प्रकाश व महाप्रभुजी की कृपा व श्री होली गुरुजी के  मार्गदर्शन सहित -
 
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
ॐ शांति शांति शांति
 
आशीरवाद सहित,
विश्वगुरुजी