पद राग आसावरी जोगिया न॰ १
सुमरो घण नामी गुरु देवा॥टेर॥
सबसे शेष गणेश गणादिक, करो चरण की सेवा।
गणाधीश गणईश गणपति, रिद्वि सिद्वि सुख देवा॥१॥
कर कृपा कारज मम सारो, आरम्भ सुफल करेवा।
शासन करता विश्व भरता, घट घट वास करेवा॥२॥
जो जन नाम आपको सुमरे, ज्ञान भाण प्रगटेवा।
जहा देखू वहा सत गुरु स्वामी वेद संत सब कहेवा॥३॥
श्री देवपुरीसा निर्गुण नारायण सर्बेतर व्यापेवा।
श्री स्वामी दीप सत्ता सब मांही मेरा अनुभव एवा॥४॥