पद राग मारवाडी रसीया न॰ २१
हाँ हाँ रे मत जोय मन्दिर में।
ठाकुर व्यापक है सब जग मांयने॥टेर॥
काशी मथुरा हरिद्वार का गौकुल गंग केदार।
गो हाथी अरु स्वपच ब्राह्मण सब में है इकसार॥१॥
ठाकुर सो ठेरीयो जी जहा तहा भरपूर।
मंदिर मूर्त सूरत सब में ठाकुर एक निहार॥२॥
अंतर बाहर ठाकुर पूर्ण निज केवल निराधार।
सच्चा सत गुरु भेटिया जी तब आयो इतवार॥३॥
श्री देवपुरी निर्गुण नारायण ईश्वर के महा ईश।
श्री दीप कहे मम ऐसी अनुभव है सो है जगदीश॥४॥