पद राग कैरवा न॰ २२
हाँ हाँ रे सुण बात बताऊ।
कैसे सूतो रे जाना दूर है॥टेर॥
भ्रमित विरती हो गई तेरी द्वैत अविद्या पूर।
जन्म मरण के चक्कर मांही आवागमन जरुर रे॥१॥
सुन्दर काया देख भूलियो मोया धन परिवार।
प्राण निकल जब जाय बदन से यह तन होवे छार रे॥२॥
सोते रेन बीत गई सारी अब उग्यायो सूर।
मानो तो है मोज आपकी काल करेगा चूर रे॥३॥
नही उधारो मिल सके सरे कही कोई हाट बाजार।
सेन्दा वहा कोई नही कष्ट पडे भरमार रे॥४॥
श्री दीप हरि यो कहत है रे सुण परदेशी बात।
आयो ज्यू ही जावसी रे कौन चलेगो साथ रे॥५॥