पद राग दीपचन्दी ताल न॰ २५
सूरत लागी श्याम स्यू ये हेली।
रेन दिवस इकसार॥टेर॥
भई उम्मेदी दरशन करस्यू हृदय धरस्यू ध्यान।
गुरु चरणों में कोटि तीर्थ करु मैं ज्ञान स्नान॥१॥
पांच सखिया भेली हुई जी गावे सारंग लूर।
चौथे पद मे प्रीतम जी का आसन अटल जरुर॥२॥
बात कही ब्रह्म ज्ञान की जी करली मन मंजूर।
जन्म जन्म अब भूलू नाहीं सत गुरु देव हजूर॥३॥
नित गुण गाऊ आपराजी हरी विरद निभावणा हार।
श्री दीप करे गुरु देव ने स जी वन्दना बारम्बार॥४॥