पद राग मारवाडी न॰ २८
श्री सतगुरु सतसंगिया री ओलू आवे।
ओलू आवे जी नैन भर जावे॥टेर॥
जल बिना मीन प्राण तज देवे।
तडफ-तडफ ज्यां रो जीव जावे॥१॥
मान सरोवर हंस विराजे।
मोती नहीं तो हंसा क्या खावे॥२॥
सागर सीप उमंग होय तरसे।
अमृत बून्दा कुण बरसावे॥३॥
पिहु पिहु नित रटत पपैया।
पडियो नीर वाने नही भावे॥४॥
श्री दीप कहे नित होत जहा सत संग।
धन्य बडभागी सोजन पावे॥५॥