पद राग वारा हंस नं॰ २९
हे मना मन मोहन सत गुरु श्याम।
प्रेम बिरह का जादू डारा जहा देखू जहा राम॥टेर॥
तन मोया मन मोह लिया जी जग से कर उपराम।
खान पान की सुधि नांही रही जी बिसर गई तमाम॥१॥
अब नही भूलू आप ने स जी चाहे हो बदनाम।
लोक लाज के लाय लगाऊ मुझे आप से काम॥२॥
मधुरी मधुरी मुरली बाजे यजुर्र अथर्रा रघु श्याम।
सोहं ॐ पेरवा लागे बोध यथार्थ धाम॥३॥
श्री देवपुरी परब्रह्म गोसाई व्यापक सर्व तमाम।
श्री दीप कहे सर्वेत्र सत गुरु बन वस्ती अरु ग्राम॥४॥