पद राग गजल धमाल नं॰ ३०
परम गुरु अरज मेरी सुनावोगे तो क्या होगा।
दु:ख्यारी दीन दुर्बल को निभावोगे तो क्या होगा॥टेर॥
इसी संसार सागर में सहारा है नहीं मेरे।
किनारे नाथ नौका को लगाओगे तो क्या होगा॥१॥
बडों की रीत है ऐसी शरण में आये को त्यारो।
करु आशा सदा ही मैं पुरावोगे तो क्या होगा॥२॥
महा कामी क्रोधी मैं विषादी मैं फिसादी हूँ।
भयंकर काम दुश्मन से छुडा दोगे तो क्या होगा॥३॥
श्री गुरु देव स्वामी ने अनंतों जीवों को तारा।
स्वामी दीप की बिनती लिरावोगे तो क्या होगा॥४॥