पद राग वरहंस नं॰ ३१
हे मना रे सत गुरु महिमा जान।
ऋषी मुनि अवतार अवलिया गावे वेद पुरान॥टेर॥
श्री सत गुरु सम और नहीं दूजा चरण कमल धर ध्यान।
मेघा बुद्वि प्रकट कर उर में पावो पद निरवान॥१॥
अमर मंत्र गुरु देव उचारे सुण श्रवण दे कान।
जन्म जन्म का पातक छूटे मिटत चौरासी खान॥२॥
सत गुरु सम हुआ न होसी समझ यही परवाण।
वारां वचन है रतन अमोलक समझो यही सुझाण॥३॥
अलख निरञ्जन अंतरयामी श्री देवपुरी सा भगवान।
श्री दीप कहे अभय पद परस्या नही आन नहीं जान॥४॥