पद राग मारु नं॰ ३२
वो दिन भाग्य हमारा सजन परम गुरु पावणा रे।
कोटिक चरण कमल में तीर्थ हो गये न्हाबणा रे॥टेर॥
हंसो सोहं सोहं हंसो सोहं गावणा रे।
शिवोहं सर्वे सर्वा धार केवल्य।
नित्य मुक्त निराधार एक निहारना रे॥१॥
स्वामी अजर अमर अविनाश।
प्यारो लागे ब्रह्म विलाश।
मैं तो गुरु चरण को दास ऐसी धारणा रे॥२॥
आकर दीनी मोय बधाई।
ज्यां की कैसी करु बडाई।
सतगुरु श्याम हमारे आई जै जै करना रे॥३॥
सन्मुख हाथ जोड कर ध्याऊँ।
भगवन दरश आपको चाऊं।
अर्जी लेवो स्वीकार करु मैं बधावणा, रे॥४॥
श्री गुरु देवपुरी सा गोविन्द, व्यापक।
जहाँ तहाँ निस कन्द।
श्री स्वामी दीप भये आनन्द अनूप अपारणा रे॥५॥