पद राग विलावल नं॰ ५४
मानरे मुसाफिर प्यारे, बात हमारियां।
बात हमारियां दिन जात गुजारियां॥टेर॥
राज पाट महल रानी, यह सब जान कानी।
आखरी में नाश होनी, रतीना कसरियां॥१॥
मूसा को बिलारी जैसे, चिडियों की बाज तैसे।
शीश पै भुँवेरे तेरे, काल की चकरियां॥२॥
कुटुम्ब परिवार सारो, कोई नहीं संगी थारो।
काल सिंह खाय जाय, जैसे बकरियां॥३॥
घडी पल देर नाहीं स्वास पंछी उडी जाई।
देह मिट्टी मिल गई, हंस बिछडियां॥४॥
अंजली नीर ओस को पानी, ऐसी जानो यह जिन्दगानी।
श्री स्वामी दीप कहे निर्बानी, यह जग जानो रे झूठी नगरियां रे॥५॥