पद राग दीपचन्दी ताल खमाच नं॰ ६५
मानो ही मानो साहेव, मैं पतिव्रता नार।
पीव बिना में पलक न रेऊं, ऐसी बात किन आगे केऊं,
कुडी कहूँ तो धिक्कार॥टेर॥
आन पुरुष के संग न खेलू, तन मन की वहां संकन खोलू।
नहीं नैन भर सामी जोऊं, जे जोऊं तो रांड जन्म धिक्कार॥१॥
और किसी से करु सन्देशो, मेरे मन में नेम है ऐसो।
नहीं और किसी को राखू पैसो, जे राखू तो में रुलियार रांड धिक्कार॥२॥
नहीं और पुरुष के संग में जाऊं, एक पलक विश्वास न लाऊं।
नहीं किसी की फंक में आऊं, जे भरमू तो रांड नाम धिक्कार॥३॥
मेरा पीव सतगुरु जग मांही, और पुरुष जग में कोऊ नाहीं।
स्वामी दीप कहे पतिव्रता, नहीं समझे तो कुटिल रांड धिक्कार॥४॥