पद राग बधावा नं॰ ६८
सैया सतगुरु अविनाशी ये।
ईश्वर करे वा की बन्दगी, देव तीनों करत खवासी ये॥टेर॥
अवतार करे वां की आरती रिद्व सिद्व चरणां की दासी ये।
गंधर्व गायन करत स्तुति, हमेशा यश गावे स्मृति ये॥१॥
चारों वेद ऋचायें धुन गावे, चन्द्र सूरज करत चिराकि ये।
सुर नर मुनीजन करत आराधन, मनवांच्छित पाइये॥२॥
शिरोमणी आप शेष मुख शिवरे, योगी जन ध्याइ ये।
भक्त करत नित चरण रज सेवा, तन मन अरपाइ ये॥३॥
श्री देवपुरी सा ब्रह्म आद अनादि, अविछल गादी ये।
स्वामी दीप कहे गुरु महिमा, शोभा वरणी न जाई ये॥४॥