पद राग देश तर्ज धीमी नं॰ ७६
मन रे तू सत समागम कीजे।
ढीलो मत ना रीजे वीर॥टेर॥
तन मन धन सब अर्पण कीजे, अर्पण करो शरीर।
जो कुछ संत कहे जो सुनजे रीजे महरी गम्भीर॥१॥
ओ संसार ओस को पाणी, संग नहीं चले शरीर।
देखत ही जग दौडयो, जावे राजा रंक बजीर॥२॥
स्वपने में संसार गमावे, मानस माणक हीर।
गयो वक्त फिरके नहीं आवे, चौरासी धरे शरीर॥३॥
काल बली बलवान है जी, मारे मोटा वीर।
स्वामी दीप की याही विनती, करजो सत संगत में सीर॥४॥