पद राग रसिया नं॰ ८६
मना मन मोय लीनो, सतगुरु श्याम।
आपो आप अलख अविनाशी, क्या दुनियाँ से काम॥टेर॥
नींद न आवे चैन नहीं पल भर, बिसर गई तमाम।
मुझको बरसे एक बराबर, जंगल और ग्राम॥१॥
पल में गाऊं पल में बजाऊं, मैं हंस हंस करु हगाम।
तन मन की सब सुधि बिसारी, फीकी खलक निकाम॥२॥
जप तप तीरथ व्रत सब झूंठा, नहीं भावे कोई धाम।
अल्ला खुदा ईश्वर नहीं मानू, नहीं मानू मैं राम॥३॥
ॐ सोहम सुमरण नहीं मानू, नहीं साधु प्रणाम।
इडा पिंगला सुखमण नहीं मानू, नहीं सिवरु कोई नाम॥४॥
श्री देवपुरी ब्रह्म है मन मोहन, वह मन भावे श्याम।
श्री दीप कहे करुं कोटि वन्दना, चरण कमल विश्राम॥५॥