पद राग वारा हंस नं॰ ८८
म्हारा देवरा में देव, बाहेर नहीं भटकूं।
बाहेर नहीं भटकूं, भरम में नहीं अटकूं॥टेर॥
नहीं कोई काशी मथुरा धामा, मेरा घट में मेरा ही रामा।
जाने कोई चतुर सुजान, गम नहीं सकू॥१॥
नहीं कोई देव प्रयाग हरिद्वारा, ज्ञान बिना यह निष्फल सारा।
मोक्ष कबहूँ नहीं होय, न्हाये गंगा तट कूँ॥२॥
आतम देव लख्या में न्यारा, काल कर्म क्या करे हमारा।
तोड्या भ्रम घूंघट कूँ॥३॥
सत गुरु आया हंस चेताया, मुक्त पठाय स्वरुप लखाया।
खोल्या अन्दर पटकू॥४॥
श्री पूज्य देवपुरी भगवान श्री दीप कहे मेरा मन माना।
आतम देव लखाया भटकू॥५॥