पद राग खमाच नं॰ ९८
महिलायत ऐसी देखी रे मैं, अजब अनूप।
अजब अनूप वामें खेल रयारे, राम सतगुरु भूप॥टेर॥
धरण गगन बिन अधर बणी है, ऐसा है वां का अजब स्वरुप॥१॥
नहीं वहां अगन पवन नहीं पाणी, नहीं छाया नहीं धूप।
सतगुरु साहब देव दयालु, चरण कमल जस रुप॥२॥
श्री स्वामी दीप चरणों के चाकर बेहद ब्रह्म अरुप॥३॥