पद राग हिंडोर नं॰ ११४
आगम दिशाने हेली चालणो ये, लीयो ब्रह्म विचार।
खोज खोज खोजी चले, मिलसी सरजन हार॥टेर॥
भजन करो ये हेली भावरा निर्गुण निराधार।
ऐसा हो साहेब आपणा ये, अविचल करतार॥१॥
अविनाशी के दरबार में ये बेगम शून्य अपार।
हिरां को बिणज हरी नाम को ये, मिलसी माल बाजार॥२॥
श्वेत वर्ण प्रकाशिया ये झिल मिल दीदार।
सात शून्य के उपरे ये, कुदरत आप असार॥३॥
अर्ध उर्ध आसन दिया ये, रंग न रुप लिगार।
उर न परे वारा पार है, हंसा मुक्त द्वार॥४॥
भगवन देवपुरी सतगुरु मिल्या ये।
स्वामी दीप दर्शन करे, वन्दन बारम्बार॥५॥