पद राग लावणी नम्बर ११९
सत गुरु महा सूरन का सूर, जिनका नाम नित्य मशहूर।
भ्रमना करदी चकना चूर, अविद्या भाग गई सब दूर॥टेर॥
बाजे अनहद तूर, सब छोड दिया मगरुर।
ऐसा मतवाला भरपूर, नहीं है नैडा नहीं है दूर॥१॥
हमेशा हाजर है हजूर, आशिको के नजदीक रहता, गाफिलों से दूर।
हर जगह हमेश है, परवेश है वो नूर, जगत जानो उन्ही का अंकूर॥२॥
सब रचना उनकी खूब है, वह करता करनी करत है कूर।
उनकी महिमा अपरम्पारा, नहीं जाने कोई आसूर॥३॥
सतगुरु ॐकार है आद अनादि, तिहुँ लोक में है स्वनूर।
स्वामी दीप कहे अविनाशी, मैं चरण कमल की धूर॥४॥