पद राग दीपचन्दी ताल नम्बर १२०
बधावा ऐसा नित नवलाये आली, सत गुरु ब्रह्म स्वरुप॥टेर॥
धन्य धन्य मानुष पद धारी, महा भूपन के भूप।
आनन्द मंगल हो रया है, जी ऐसा है आप अनूप॥१॥
दर्शन कर प्रसन्न भया जी, टल गया भव जल कूप।
कोड भाण का भया उजाला, नहीं छाया नहीं धूप॥२॥
रंग न रुप स्वरुप नीरंगो, ज्यों मालिक महबूब।
चराचरी में खेल रयो है, मैं दर्शन कीना खूब॥३॥
श्री सतगुरु सायब देवपुरी सा, निर्गुण सत स्वरुप।
श्री दीप कहे चरणों का चाकर, तन मन स्वामीजी को सूप॥४॥