पद राग बधावा नम्बर १२१
ही मना मन रलिया का मेला रे,
मन रलियो श्री गुरुदेव सू, रहूँ हरदम मेला रे॥१॥
तन मन तो मिलिया नहीं वां रा कहरा मेला रे।
मन मिलिया बिछडे नहीं, ज्यांरा भाग सचेला रे॥२॥
नुगरा से मन नहीं मिले, कपटी मन मैला रे।
वह दोजख रा जीवडा, नरका जावैला रे॥३॥
लख चौरासी फिरेला भटकता, नहीं पावे गेला रे।
समझ बिना दु:ख पावसी, घणा बोते बैला रे॥४॥
श्री सतगुरु साहब देवपुरी सा, निर्भय रैवेला रे।
श्री दीप कहे बधावा गावो, भव २ का हूँ चेला रे॥५॥