पद राग मारवाडी नं॰ १२३
सत गुरु दाता सा, प्रीत पुराणी पाली कियो उपकार।
भव भय भूलू कोनी प्राण के आधार॥टेर॥
भव सागर में बह्मो हम जाते, लख चौरासी में गोता हम खाते।
भुजा हो पकड मने कियो भव पार॥१॥
महा दु:ख हमसे सह्मो न जातो चरण शरण बिना घणो दु:ख पातो।
श्री पूज्य आप कियो सा भव पार॥२॥
सत गुरु स्वामी अंतर्यामी, नारायण अवतार।
स्वामी दीप शरणे सत गुरु के, चरण कमल बलिहार॥३॥