पद राग मारवाडी नम्बर १२४
सजन सब आयु जावे रे इयां इयां इयां।
सत संगत सतगुरु सा की सेवा हुई नहीं हुवे वृथा काहे को जीया॥टेर॥
ज्ञान ध्यान नहीं सिवरण कीना।
जप तप योग दान नहीं दीना, पिछतावेलो नरक गीया॥१॥
लख चौरासी फिरे भटकतो, महा कष्ट योनी में भुगतो।
कर्मो को भार लिया॥२॥
सत गुरु स्वामी देवपुरी सा, स्वामी दीप शरणे सतगुरु सा के।
पाव होवे रै हरि ध्यान किया॥३॥