पद राग मारवाडी नं॰ १२८
रजनी में सूरज उग्यो सा, अचम्भो ऐसो आवे।
अचम्भो ऐसो आवे,
मुख से कयो सुण्यो नहीं जावे॥१॥
सोहनी सिखर में भल हल भलके,
ऐसा हो अजब उजाला हो सा॥२॥
तीन लोक में सत गुरु दर्शन,
सत्य स्वरुप निराला हो सा॥३॥
अवगत अलख खलक में खेले,
पलका में प्रकाश्या हो सा॥४॥
सतगुरु स्वामी कृपा कीनी,
अलौकिक पद पाया हो सा॥५॥
स्वामी दीप सदा शरणागत,
जीवन मुक्त मिलाया हो सा॥६॥