पद राग लावणी खडी नं॰ १३७
हाँ वाचक ज्ञान सीख कर मूर्ख पची करण का पाठ करे।
नवीनसीख वेदांत अज्ञानी महामूर्ख उपदेश करे॥टेर॥
मर्यादा हीन सब वचक ज्ञानी, कूड कपट अभिमान करे।
विमुख पापी फिरे भटकता, भ्रष्ट व्यवहार आचार करे॥१॥
नहीं लखे ज्ञान लोकिक सनातन, अलौकिक प्रचार करे।
ऐसे कली में साधु ब्राह्मण, कुल, डूबन के काम करे॥२॥
लिंग शरीर नाश नहीं होता, आद अनादि जनमा ही करे।
अलख अमात्र है अविनाशी, नहीं लिखने में ये आया करे॥३॥
नभ मांय नही चित्र लिखिजे, लिख पोथा पाखण्ड करे।
अपना आप आत्मा जागे अनुभव अपना आप करे॥४॥
स्वामी दीप कहे सुण पण्डित, क्यों वृथा बकवाद करे।
सद विद्या बिन भेद न पावत, क्या कोई उपकार करे॥५॥