श्री काशीविश्वनाथ की जय !
सुमेरुपीठाधीश्वर जगद्गुरुशंकराचार्य
स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती महाराज
के द्वारा
श्री स्वामी माधवानन्द महाराज को
श्री १००८ हिन्दूधर्मसम्राट् की उपाधि दी जाती है
अपनी प्राचीनतम सद्गुरु की परम्परा से आपने परमात्मा के सत् एवं चित् स्वरूप से तादात्म्य स्थापित किया और उससे प्राप्त प्रकाश से आप ऊर्ध्वरेतस हो गए। इस ब्रह्मचर्य की परम अवस्था को प्राप्त होने से आपका चित्त भी संस्कारित हो गया । संस्कारित चेतना से निकली प्रखरता के प्रकट प्रभाव से प्रभावित अन्त:करण की निर्मलता से निर्मलित आपने मानव समाज में प्राप्य सम्मान की उच्चतम सीमा को प्राप्त कर लिया है। मानव द्वारा अप्राप्त उत्कर्ष की पराकाष्ठा से उठती हुई सुयश की पंक्ति से सुशोभित प्रकृष्ट वैराग्य के साम्राज्य की आप ध्वजारूप हैं।
इस ध्वजा के गौरव से योगियों द्वारा प्राप्त करने के योग्य सम्मान प्राप्त करने के कारण जो तेज आपको प्राप्त हो गया है उस अद्भुत वैभव से आप वैभवशाली हो गये हैं। भवातीत-स्थिति को प्राप्त आप भव अर्थात् संसार को प्रकाशित करने वाले भव अर्थात् शिव के आराधन में तत्पर परमहंस, योगिकुल के आभूषण, योग में निरन्तर लीन परमगूढ परमात्म तत्व की प्राप्ति में ही निरन्तर लगे हुए परमात्म तत्व रूप निधि के भण्डार हो गए हैं। अपने इष्टदेव जो आपके परम अभिलषित हैं, उनके साक्षात्कार से धवल कान्ति आप निर्मल व्यक्तित्व के स्वामी हैं। अपने स्वरूप के कारण बिना आयास के ही निवृत्ति प्राप्त करके आप अतिशय सुख के असीमित सागर में निमग्न हो गये हैं। परमेश्वर की अपार दीप्ति से दीप्त होने से आपके सामीप्य में आये हुओं को भी आप अपने प्रभामण्डल से मण्डित कर देते हैं। मण्डलाधीश, योगीश्वर, सद्गुरु परमहंस स्वामी श्री माधवानन्द जी की महान् भावों से परिपूर्ण, सद्भाव की अतिशयता से भरी हुई यह अनिन्द्य, अभिनन्द्य, आनन्दित हृदय से अभिनन्दन के रस से आप्लावित प्रशंसित गद्य पद्यरूप कुसुमों की उदार वरद हस्तकमलों से निकली यह वाक् अंजलि समर्पित है:
प्रारम्भ में देवाधिदेव की प्रतिमूर्ति सुकृत गुरु देवपुरी नाम से हुए, जिन्होंने प्रशंसित यज्ञादि कर्मों से एवं महाप्रभु दीपनारायण की कृपा से संसार में जन्म लिया। सौभाग्य से उनके ये अतुलनीय शिष्य योगीन्द्र माधवानन्द नाम के हैं जो अपने साक्षात् दिव्य प्रकाश से समस्त विश्व में अभिनन्दित हैं।॥१॥
ये योगिराज, विश्ववन्द्य सद्गुरु सम्पूर्ण विश्व में निरन्तर प्रकाशित अति गम्भीर वाणी के द्वारा ज्ञान और वैराग्य की दीक्षा देने के लिए प्राणिमात्र के प्रति प्रेम के कारण उन्हें आनन्द प्रदान करने हेतु व्रत धारण करके मानों अपने माधवी इस नाम की व्याख्या सी करते हुए अतिशय अनुराग को धारण किए हुए हैं। ॥२॥
सर्वोच्च, अध्यात्म से सुन्दर, निरन्तर उन्नति की ओर अग्रसर चेतना से युक्त, अनन्त मुक्ति की भूमानन्द की धारा केा प्रवाहित करने वाले, प्रवचन में पटु आप मानों अनेक वाणियों को धारण किए हुए हैं। देश देशान्तरों में अपने विशद ज्ञान की राशि को प्रकटित करने से स्वयं प्रकाश, शिव की शरण में आए हुए, काशी नगरी में समागत मुनिश्रेष्ठ आप अभिनन्दन के योग्य ही हैं। ॥३॥
योग के अंगभूत विविध विषयों के ग्रन्थों का प्रकाशन करके, दूरदर्शिता के वैदुष्य का अनुभव करके इस लोक में अपने भक्तजनों पर कृपादृष्टि बनाए हुए, युक्तयोगी, परमहंस होकर मनीषी ये माधव (कृष्ण) साक्षात् शिव की नगरी में आकर अत्यन्त सुशोभित हो रहे हैं। ॥४॥
पाश्चात्य जनों केा प्राच्य (भारतीय) विद्या में प्रवेश करवाकर आपने उसके अनेक पक्षों से परिचित करवा दिया है। अपने सामर्थ्य से अन्तस् को सब ओर से प्रतिपल विमल ज्योति से ज्योतित करके विश्वात्मा की उपलब्धि के कामार्थी हे योगी! आपने अनेक दिशाओं में योगशिक्षा का प्रसार किया है। योग के मार्ग पर चलते हुए संसार के उपकार के लिए योगमार्गी बनकर माधव इस नाम को प्राप्त किया है। ॥५॥
स्वर्गधरा वाराणसी की भूमि पर देवताओं एवं विद्वानों की सभा में सुशोभित, सम्मानित उनके साथ निवास करने वाले, गुरु की गरिमा को प्राप्त कर अशेष (सम्पूर्ण) देश को सुशोभित करने वाले ये श्री माधव नाम के सुविदितयश, श्रेष्ठ स्वामी महान् विद्वानों से स्वागत के योग्य हैं। यह श्री माधवानन्द स्वामी सतत सौ वर्ष की आयु को प्राप्त करें। ॥६॥
राजस्थान की भूमि भारतवर्ष में चिरकाल से शूरवीरों की जन्मभूमि प्रसिद्ध है। उसी धरा को श्रीमान् यतिवर ने अपने जन्म से अलंकृत किया है। आपने इस अवनितल (धरती) में तेज की धाम योगयज्ञ की भूमि की स्थापना की है। वह योगैश्वर्य एवं ऐश्वर्य दोनों ही का आज भी प्रसार कर रही है। ॥७॥
आज योग्य शिष्य के द्वारा आपका गौरव द्विगुणित हो गया है। उससे नि:सृत वैभव से आप शोभायमान हैं। सभा में गुरुपद के आसन पर सुशोभित, दीप्तिमान् वेश धारण किए अनुपम योगविद्या से पुनीत आपके दर्शनों से काशी की जनता व विद्वत् जन दोनों ही एक साथ आपकी अर्चना कर रहे हैं।॥८॥
श्री माधवानन्द के द्वारा अभिनन्दित शिव का महत्व और भी बढ जाता है। उचित ही है कि महान् जन परस्पर के गौरव की वृद्धि से परम कल्याणकारी हो जाते हैं। ॥९॥
पद्यों की इस कुसुमांजलि से सुशोभित, सद्भावों से परिपूर्ण इस विद्वानों द्वारा दिए गए महान् साभार सम्मान को कृपया स्वीकार कीजिए। ॥१०॥