सन् २००१ में कुंभ मेले प्रयाग राज में श्री महामण्डलेश्वर परमहंस स्वामी महेश्वरानंद जी को काशी विद्वत् समाज के द्वारा विश्वगुरु की उपाधि प्रदान की गई थी।
आज प्रथम बार इसका हिन्दी अनुवाद प्रकाशित किया जा रहा है।
श्री काशीविश्वनाथ की जय हो
अभिनन्दन पद्यकुसुमांजलि
अभिनन्दन पद्यकुसुमांजलि
सुमेरूपीठाधीश्वर जगद्गुरुशंकराचार्य विश्वगुरूमहामण्डलेश्वरपरमहंस-
स्वामीमहेश्वरानन्दपुरीमहाराज
स्वामीमहेश्वरानन्दपुरीमहाराज
भारत में आदिकाल से प्रचलित महनीय योगविद्या के दान से सम्माननीय आचार्यों में आप मूर्धन्य हैं। समग्र पृथ्वी पर आपका यश प्रसृत है। उस यश से दीप्तिमन्त आपकी दीप्ति के तुल्य ही श्रीयुक्त आपका अपने अनुरूप ही स्वरूप है। प्राचीन सदाचार के संस्कारों के संभार से उत्पन्न अपने सद्भाव, अपनी महिमा के प्रभाव से आपने सभी देशों के आत्मीयजनों अर्थात् प्रवासी भारतीयों और सज्जनों के मन में विशेष स्थान बना लिया है। सनातन अर्थात् पारम्परिक एवं आधुनिकता दोनों के आधारभूत अपनी प्रभूत अन्त:प्रज्ञा द्वारा जाने गये योगमार्ग के ज्ञान से परात्मज्ञान एवं प्रकृष्ट अध्यात्मज्ञान के प्रकाशमान होने से आप तेजयुक्त वाणी तथा तेजस्विता से पवित्रा विग्रह वाले हो गये हैं। अपने एवं अन्य राष्ट्रों के समस्त संशयग्रस्त जनों के संशयों का यम, नियम, आसन, धारणा, ध्यान और समाधि द्वारा समाधान करते हुए आप उनके उद्धार हेतु उन्हें दीक्षाव्रत प्रदान करते रहते हैं। अन्तर्दृष्टि से सम्पन्न विश्ववन्द्य श्री दीपनारायण महाप्रभु एवं सद्गुरु परमहंस स्वामी माधवानन्द श्रीयोगिराज परमहंस विश्वगुरु महेश्वरानन्द महाशय, जिनके हस्तयुगल में कमल का निवास है अर्थात् जिनके हस्तकमलों में लक्ष्मी निवास करती है ऐसे आपके चरणचिह्नों पर चलने वालों के द्वारा स्वागत, सौहार्द व आदर से परिपूर्ण भेंटस्वरूप पवित्रा वाणी से अभिनन्दन करने वाली पद्यप्रसूनों की पुनीत अंजलि आपको समर्पित है :
सभी ओर से विश्वगुरु उपाधि से विभूषित महामण्डलेश्वर पीठ को अलंकृत करके अपनी प्रभा से तथा अपनी प्रतिभा से जो आप द्युतिमान् हैं। पुण्यों की धुरी इस महेश्वर की नगरी का पोषण करते हुए काशी निवासी भगवान् शिव के सामीप्य में आकर उनके चरणकमलों को दीप्तिमान् करते हुए वह आप सदा शोभायमान रहें ॥१॥
द्युतिमान् स्वर्ग बनी हुई यह सुशोभित वाराणसी नगरी, त्रिशूलधारी शिव के यहां भूमिष्ठ होने से साक्षात् कैलाश पर्वत ही बन गई है। यहां साग्बशिव के होने से इस नगरी में सज्जनों के लिये मुक्ति नित्य सुलभ है। ऐसी इस पुण्यपुरी का सम्मान परमयोगी परमहंस स्वामी महेश्वरानन्द पुरी के आगमन से पराकाष्ठा पर पहुंच गया है ॥२॥
हे महात्मन् रूपावास के अग्रहारों के महान् सदन में आपके जन्म लेने से राजस्थान की महिमामयी भूमि और भी महान् हो गई है। अपने माता पिता से जन्म लेकर सत्कीर्ति का प्रवर्धन करते हुए आप निखिल भुवन में समग्र गनमण्डल में भास्कर की भांति भासित हो रहे हैं॥३॥
बाल्यावस्था की अल्पायु में ही पिता के देहान्त से उत्पन्न अतिशय क्लेश को प्राप्त तथा जगत् की अपने प्रति उदासीनता उपेक्षा का अनुभव करने से आपका मानस भगवद्भक्ति में लग गया। इस प्रकार अपने मन को वैराग्यप्रवण करके आपने नाना के घर पर ही अध्यात्मदृष्टि से गुरु बने अपने नाना से ही दीक्षा ग्रहण कर ली॥४॥
हे स्वामी आपने द्वादश वर्ष की आयु में ही अपनी उन्नति से उन्नत अपने जीवन को अपने जन्मदाताओं की मुक्ति के लिए समर्पित कर दिया और आनन्दपूर्वक महेश्वरानन्दपुरी नाम ग्रहण करके परब्रह्म के मार्ग में निष्काम भाव से अर्जित पारमार्थिक सुखके धाम साधुओं के अग्रधाम हो गये॥५॥
श्री दीपनारायण नामक महाप्रभु से उपदिष्ट अपने गुरु श्रीमाधवानन्द द्वारा ग्रहीत सनातन योग की परम्परा आप के द्वारा वेदान्त के मार्ग के निदर्शन से आगे ले जाई गई है। आज भी संसार में मानवों के अभ्युदय के हितार्थ उस परम्परा को योग के पथ के आलोक में ही आप प्रचारित कर रहे हैं॥६॥
इस काशी नगरी में आपकी श्रेष्ठ मंगलकारिणी मेधा के कारण शास्त्राज्ञान से अनावृत चक्षुओं वाले अनेक विद्वानों की परिषद् में सम्माननीय सभ्यजनों के सान्निध्य में आज हे अतिथिमहोदय योगीश्वर महेश्वरानन्दपुरी स्वामी महाराज आपका जो स्वागत सत्कार किया जा रहा है वह सब कुछ हमारे लिये अति आनन्दप्रद है॥७॥
श्रौत एवं स्मार्त अर्थात् वेदों और स्मृतिग्रन्थों से सतत उपदिष्ट, विश्व के एकमात्रा सुख के धाम, योग के आचार विचार से पुष्ट अर्थात् उन्नति को प्राप्त एवं अतुल प्रकृष्ट ज्ञान के कारण प्रकटित आभा से युक्त, अध्यात्म की अग्नि से परिमार्जित परमात्मा के मार्ग वाले तत्वरूप दीपक को प्रज्वलित करके हे स्वामी, आप विनाश के कगार पर -स्थित इस विश्व की पुन: पुन: रक्षा कीजिए॥८॥
श्री स्वामी महेश्वरानन्दपुरीमय होने से सुशोभित, विद्वज्जनों से युक्त इस शिव की पुरी में आपका पद्यप्रसूनों से अभिनन्दन करके ये प्रबुद्धजनों की मण्डली अति प्रसन्न है॥९॥
सभी के द्वारा समर्थित अभिनन्दनीय इस अभ्यर्थना को प्राप्त करके अति गौरवान्वित हे स्वामी आप सदा शिवकृपा से आप्लावित इस देह में अतिशय स्वान्त:सुख को उपलब्ध हो रहे हैं॥१०॥
हे महेश्वरपुरी स्वामी अपने इस अध्यात्मवैभव को, जो शंभु से उत्पन्न ज्योतिरूप है, आप इस पृथ्वी पर सभी के कल्याण के लिये प्रचारित प्रसारित करते रहें॥११॥