१७ – १९ अप्रेल २०१५

सत्यम शिवम सुन्दरम

भारत यात्रा से पूर्व विश्वगुरु परमहंस स्वामी महेश्वरानन्द पुरीजी ने स्ट्रिल्की आश्रम में सप्ताह के अंत में अलग से सेमिनार रखा। ये उन लोगों के लिये एक भाग्यशाली उपहार था, जो स्वामी जी से मिलना चाहते थे।

 
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विश्वगुरुजी के सत्संग के तीन दिन, हमेशा की तरह अनमोल मोती की भाँति भर गए। जिनमें व्यावहारिक मार्गदर्शन और आध्यात्मिकता चाहने वालो के लिये प्रेरणा थी।
 
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अंतत: हमने उस सच का पता लगा लिया कि ब्रह्म सत्यम, जगत मिथ्या हमारे अन्दर है। सत्यम – सच्चाई। हमने जो कुछ भी किया है, वह अस्थायी है। अच्छा या बुरा, बुद्धिमान या मूर्ख, सब बदल जायेगा; अंतत: फिर भी वह ब्रह्म है। ब्रह्म सत्यम, जो शाश्वत है और जो फिर से शिव चेतना करने के लिये चला जाता है। "सत्यम् शिवम् सुन्दरम्" अगर हम इसे प्राप्त कर सकते हैं तो यही जीवन की सुन्दरता है।
 
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इस सेमिनार में एक बार फिर विश्वगुरुजी ने शिक्षा का महत्त्व बताया और कहा कि नई पीढी के लोगों को आध्यात्मिक शिक्षा की आवश्यकता है अन्यथा मानवता अपनी संस्कृति और उसके भविष्य को खो  देंगे।
 
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