१५ अगस्त २०१७ को महाप्रभुदीप आश्रम स्त्रिल्की, चेक रिपब्लिक में दो मांगलिक अवसर एक साथ उपस्थित हुए - एक ओर पूज्यपाद विश्वगुरु महेश्वरानन्द जी गुरुदेव का अवतरण दिवस ओर दुसरी ओर श्री कृष्णजन्माष्ठमी।
इस अवसर पर बच्चो ने लीला-अमृत ग्रंथ से दिव्य नाट्य प्रस्तुत किया।
बालकों की प्रस्तुति के उपरान्त, महाप्रभु दीप आश्रम के सुंदर उद्यान में सन्यासियों ने तथा हज़ारो भक्तों ने गुरुदेव के प्रति श्रद्धा दर्शाते हुए उनको उनके अवतरण दिवस की बधाईयां दी ।
साथ ही पण्डित कपिल जी ने मंत्रोच्चार करते गुरुपूजन किया।
संध्याकालीन सत्संग में, विश्वगुरुजी ने जन्माष्ठमी का अर्थ स्पष्ठ किया व शिष्यों को बताया । विश्वगुरुजी ने श्रीकृष्ण के जन्म के बारे में बताया कि श्रीकृष्ण, भगवान् विष्णु के ही अवतार थे, उनका जन्म चमत्कारों से तथा संघर्ष से युक्त था। जैसे जन्म के ६ वे दिन में उन्होने पुतना राक्षसी का वध किया, और ११ वर्ष की आयु में कंस का वध किया । अत: श्रीकृष्ण के जीवन का आरम्भ ही संघर्ष के साथ हुआ।
जब द्वापरयुग कलयुग में परिवर्तित हो रहा था, तब भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, जिसका एकमात्र प्रयोजन मानव मात्र का कल्याण था। श्रीकृष्ण की लीलायें, जो हमेशा धर्म के संवर्धन की पोषक ही रही है, उनका भी अत्यधिक मह्त्व है ।
यथा श्रीकृष्ण ने कहा कि
" यदा - यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥"
" यदा - यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥"
पुराणों के अनुसार जब भगवान् श्रीकृष्ण का पृथ्वीलोक से गौलोक गमन हुआ, तदुपरांत ही कलियुग का आरम्भ हुआ ।
दैनिक जीवन मे योग की ओर से निर्देशित ग्रीष्मकालीन अनुष्ठान व संगोष्ठी अगले सप्ताह स्त्रिल्की में ही आयोजित होगी ।
जिसमें बालकों के लिये कई कार्यक्रम आयोजित होंगे, ध्यान व क्रिया योग की उच्चस्तरीय प्रविधियां अग्रवर्ती अभ्यास कर्ताओ के लिये आयोजित होंगी । शरीर के शुद्धिकरण के लियें हठयोग शुद्धिकरण प्रविधियां, नित्य सत्संग आदि इस सप्ताह में किये जायेंगे ।