वेप, हंगरी तथा महाप्रभुदीप आश्रम, स्त्रिल्की में विश्वगुरुजी द्वारा नव यज्ञशाला का अनावरण किया गया।
विश्वगुरुजी के आशीर्वाद से पण्डित कपिलजी त्रिवेदीने वेप में पितृ पूजा प्रारम्भ की तथा जो इस पूजा में भाग लेने के इच्छुक थे वे स्त्रिल्की ग्रीष्मकालीन संगोष्ठी में भी आए ।
पूजा का मुख्य प्रतिपाद्य मानवमात्र का कल्याण था ।