"देवता खुशबू के भूखे है" अर्थात् देवताओं का पोषण सुगंध ही है। अत: हम भगवान् को अगरबत्ती एवं सुगन्धित पुष्प अर्पण कर पूजा करते है।
पह्ले भगवान् को भोजन अर्पण कर स्वयं प्रसाद खाते हैं। जब हम भोजन बनाते हैं तब हमको अनुभव होना चाहिए कि हम भोजन भगवान् के लिए ही बना रहे हैं। तब यह भोजन हमारे लिये अमृतस्वरूप हो जाता है।
स्वामी महेश्वरानन्द