परम भगवदीय एवं गोभक्त श्री गोपालदास बाबा ने प्रात: स्मरणीय श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार द्वारा सम्पादित "गो सेवा के चमत्कार" पुस्तक (अब अप्राप्य) मुझे पढने को दी तथा साथ में निर्देश भी दिया कि उक्त पुस्तक के प्रमुख संस्मरणों एवं अन्य धार्मिक ग्रंथों में निहित विचारों के आधार पर गो विषयक पुस्तक का सम्पादन किया जाए।
परम भगवदीय एवं गोभक्त श्री गोपालदास बाबा ने प्रात: स्मरणीय श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार द्वारा सम्पादित "गो सेवा के चमत्कार" पुस्तक (अब अप्राप्य) मुझे पढने को दी तथा साथ में निर्देश भी दिया कि उक्त पुस्तक के प्रमुख संस्मरणों एवं अन्य धार्मिक ग्रंथों में निहित विचारों के आधार पर गो विषयक पुस्तक का सम्पादन किया जाए।
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अत: पूज्य बाबा के आशीर्वाद से ही इस पुस्तक का सम्पादन तथा प्रकाशन सम्भव हो सका है। इसमें मेरा कुछ भी नहीं है। मैं तो गोपाल, गो भक्तों एवं पूज्य बाबा का चरण किंकर हूँ। गो रक्षा के सन्दर्भ में सद्गुरु श्री रामसिंह जी महाराज द्वारा स्थापित नामधारी सिक्ख सम्प्रदाय (कूका सम्प्रदाय से भी प्रख्यात) के सैकडों व्यक्तियों ने अपने जीवन का बलिदान कर दिया था। आधुनिक युग में स्वामी दयानन्द सरस्वती, महामना पं. मदन मोहन मालवीय, श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार, स्वामी श्रद्वानन्द, बाल गंगाधर तिलक, पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्य जी महाराज, रामचन्द्र वीर जी महाराज, महात्मा गांधी, संत विनोबा भावे, स्वामी श्री करपात्री जी, ब्रह्मचारी श्री प्रभुदत्त जी महाराज, सेठ गोविन्ददास, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघ चालक म.स. गोलवलकर, लाला हरदेव सहाय आदि सांस्कृतिक पुरूषों ने गो सेवा तथा गो वंश के संरक्षण के लिए सक्रिय प्रयास किये। गो-वध निषेध आन्दोलन में अनेक युवकों एवं संतों ने अपने जीवन का बलिदान किया।
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सर्वदेवमयी हमारी गौमाता ऐसा तीर्थ है जहाँ सब भगवत् स्वरूपों के दर्शन हो जाते हैं। श्रद्धा एवं विश्वास के साथ गौमाता की पूजा अर्चना करने एवं भोग अर्पण करने से धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष अर्थात चारों पुरूषार्थों की प्राप्ति हो जाती हैं। भारतीय परम्परा में गो ग्रास निकालने के बाद ही भोजन करने का विधान है। यहाँ तक कि कुत्ते के लिए व कौवे के लिए भी ग्रास निकालने का आदेश है।
 जब हर पर्व एवं व्रत के दिन गौमाता की पूजा अर्चना सर्वदेवमयी के रूप में करते हैं, तब हमे गाय को भोग भी उसी के अनुरूप लगाना चाहिए।
 परम गौभक्त गोपाल बाबा के अनुसार श्रीमद् भागवत् में भगवान् को रस रूप माना गया है तथा 'जलेबी' को भोग सामग्री में रस रूप माना गया है। जब गाय को जलेबी का भोग अर्पण करते हैं तब सब देवताओं को भोग समर्पित हो जाता है। इसलिए विशेष पर्व एवं व्रतों के दिन पूज्य बाबा गौमाता को पूजा अर्चना के बाद जलेबी भोग रूप में अर्पित करते हैं। विशेष पर्वों पर सैकडो गौओ को श्रीनाथ जी का महाप्रसाद भी उनके द्वारा अर्पण किया जाता है।
एक सिक्ख संत अनेक वर्षो की गौ सेवा के फलस्वरूप सिद्व हो गये। अपने भक्तों के बडे से बडे कष्टों का निवारण पूजा अर्चना के बाद गौमाता को भरपेट जलेबी का भोग लगा कर दूर कर दिया करते हैं।
जोधपुर के सिद्ध महात्मा गुरुदेव नैष्टिक ब्रह्मचारी श्री 1008 श्री मुकन्ददत्त जी महाराज गम्भीर रोगों के निवारण हेतु प्रात: ब्रह्ममुहूर्त में गाय को दो लड्डू खिलाने की आज्ञा दिया करते थे। उनका कथन था कि प्रात: गौमाता को लड्डू का भोग अर्पित करने से गंभीर रोगों का इलाज सुचारू रूप से हो जाता हैं, तथा सब कष्टों का निवारण हो जाता हैं। हमारे कई रिश्तेदारों को गम्भीर रोगों से मुक्ति गुरुदेव की आज्ञा पालन कर गौसेवा करने से हुई थी। गौसेवा स्वयं फल है।