गौ सावित्री स्त्रोत 

अखिल विश्व के पालक देवाधिदेव नारायण ! आपके चरणों में मेरा प्रणाम है। पूर्वकाल में भगवान व्यासदेव ने जिस गौ-सावित्री-स्त्रोत को कहा था, उसी को मैं सुनाता हूँ॥
 
यह गौओं का स्त्रोत समस्त पापों का नाश करने वाला, सम्पूर्ण अभिलाषित पदार्थों को देने वाला, दिव्य एवं समस्त कल्याणों को करने वाला है॥ गौ के सींगो के अग्रभाग में साक्षात जनार्दन विष्णुस्वरूप भगवान वेदव्यास रमण करते हैं। उअंके सींगो की जङ में देवी पार्वती और सींगो के मध्यभाग में भगवान सदाशिव विराजमान रहते हैं॥ उसके मस्तक में ब्रह्मा, कन्धे में बृहस्पति, ललाट में वृषभारूढ भगवान शंकर, कानों में अश्विनी कुमार तथा नेत्रों में सूर्य और चन्द्रमा रहते हैं॥ दाँतों में समस्त ऋषिगण, जीभ में देवी सरस्वती तथा वक्ष: स्थल में एवं पिंडलियों में सारे देवता निवास करते हैं॥ उसके खुरों के मध्य भाग में गन्धर्व, अग्र भाग में चन्द्रमा एवं भगवान अनंत तथा पिछले भाग में मुख्य-मुख्य अप्सराओं का स्थान है॥ उसके पीछे के भाग में पितृगणों का तथा भृकुटिमल में तीनों गुणों का निवास बताया गया है। उसके रोमकूपों में ऋषिगण तथा चमडी में प्रजापति निवास करते हैं॥
 
Deveshwar-Mahadev-gosala-17
 
 
उसके थूहे में नक्षत्रों-सहित द्युलोक, पीठ में सूर्यतनय यमराज, अपानवायु में सम्पूर्ण तीर्थ एवं गौ मूत्र में साक्षात गङ्गाजी विराजती हैं॥ उसकी दृष्टि, पीठ एवं गोबर में स्वयं लक्ष्मीजी निवास करती हैं, नथुनों में अश्विनी कुमारों का एवं होठों में भगवती चण्डिका का वास है॥ गौओ के जो स्तन हैं, वे जल से पूर्ण चारों समुद्र हैं, उनके रँभाने में देवी सावित्री तथा हुँकार में प्रजापति का वास है॥ इतना ही नहीं, समस्त गौएँ साक्षात विष्णुरूप हैं, उनके सम्पूर्ण अङ्गों में भगवान केशव विराजमान रहते हैं॥