गौ के मुख में षडङ्ग और पद-क्रम सहित चारों वेद रहते हैं।
 
Deveshwar-Mahadev-gosala-21
 
सींगों के अग्रभाग में इन्द्र और दोनों सींगों में भगवान शंकर और भगवान केशव हैं। उदर में स्कन्द, सिर में ब्रह्माजी, ललाट में वृषभ ध्वज, दोनों कानों में अश्विनी कुमार, दोनों नेत्रों में चन्द्रमा और सूर्य, दाँतों में गरुड, जीभ में सरस्वती, अपान में सारे तीर्थ, गौ मूत्र में जाह्ववी गंगाजी, रोमकूपों में ऋषिगण, मुख के ऊपर की ओर यम, दाहीनी ओर कुबेर तथा गरुड, बायीं ओर तेजस्वी बलवान यक्षगण, मुख के अन्दर गन्धर्व, नासिका में नाग, चारों खुरों के पीछे की ओर अप्सराएँ, गोबर में लक्ष्मी, गौमूत्र में सर्वमङ्गलादेवी, पैरों के अगले भाग में सिद्वादि खेचर, रँभाने में प्रजापति और गायों के चारों थनों में चारों समुद्र रहते हैं। जो प्रतिदिन गाय का स्पर्श करते हैं, वह इन समुद्रों में स्नान कर लेता है।
 Deveshwar-Mahadev-gosala-28
अतो मर्त्य: प्रपुष्ट्यै तु सर्वपारै: प्रमुच्यते।
गवां रज: खुरोद्वूतं शिरसा यस्तु धारयेत्॥
सर्वतीर्थजले स्नात: सर्वपापै: प्रमुच्यते।
 
अतएव मनुष्य को सर्वोत्तम पुष्टि के लिये गाय का स्पर्श करना चाहिये। इससे वह सारे पापों से छूट जाता हैं। गाय के खुर से उडी हुई धूलि को मस्तक पर धारण करने वाला मनुष्य भी सारे तीर्थों के जल में स्नान करने वाला समझा जाता है और वह भी समस्त पापों से छूट जाता है।