गौ सर्वदेवमयी और वेद सर्वगोमय हैं। गाय के सींगों के अग्रभाग में नित्य इन्द्र निवास करते हैं।
 
Deveshwar-Mahadev-gosala-20
हृदय में कार्तिकेय, सिर में ब्रह्मा और ललाट में वृषभ ध्वज शंकर, दोनों नेत्रों में चन्द्रमा और सूर्य, जीभ में सरस्वती, दाँतों में मरुद् गण और साध्य देवता, हुँकार में अङ्ग-पद क्रमसहित चारों वेद, रोमकूपों में असंख्य तपस्वी और ऋषिगण, पीठ में दण्डधारी महाकाय महिषवाहन यमराज, स्तनों में चारों पवित्र समुद्र, गो मूत्र में विष्णु-चरण से निकली हुई तथा दर्शन-मात्र से पाप नाश करने वाली श्री गङ्गाजी, गोबर में पवित्र सर्वकल्याणमयी लक्ष्मीजी, खुरों के अग्रभाग में गन्धर्व, अप्सराएँ और नाग निवास करते हैं। इसके सिवा सागरांत पृथिवी में जितने भी पवित्र तीर्थ हैं, सभी गायों के देह में रहते हैं। विष्णु सर्वदेवमय हैं, गाय इन विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुई है, विष्णु और गाय- दोनों के ही शरीर में देवता निवास करते हैं। इसीलिये मनुष्य गायों को सर्वदेवमयी मानते हैं।