कपिला गौ के सींगो के ऊपर के भाग में विष्णू और इन्द्र तथा सींगो की जड में चन्द्रमा और वज्रधारी इन्द्र देवता रहते हैं। सींगो के बीच में ब्रह्माजी और ललाट में वृषभ ध्वज भगवान शंकर विराजते हैं।
दोनों कानों में अश्विनी कुमार, नेत्रों में चन्द्रमा और सूर्य, दाँतों में मरुत देवता, जीभ में सरस्वती, रोमकूपों में मुनिगण, चमडे में प्रजापति, श्वासों में षडङ्ग तथा पद-क्रम सहित चारों वेद, नासापुटों में गन्ध और सुगन्धित पुष्प, नीचे के ओठ में सारे वसुगण, मुख में अग्नि, काँख में साध्य देवता, गले में भगवती पार्वती, पीठ में नक्षत्रगण, ककुद् (थूहे) में आकाश, अपान में सम्पूर्ण तीर्थ, गौ मूत्र में स्वयं श्री गङ्गाजी और गोबर में इष्ट-तुष्टमयी लक्ष्मीजी सदा निवास करती हैं। नासिका में ज्येष्ठादेवी, नितम्बों में पितर, पूँछ में रमादेवी, दोनों और की पसलियों में विश्वेदेवता, छाती में शक्तिधारी कार्तिकेय, घुटनों, पिंडलियों और जाँघों में पाँचों वायु, खुरों के मध्य में गन्धर्वगण और खुरों के अग्रभाग में सर्प बसते हैं। चारों समुद्र उसके चारों स्तन हैं।
 
Deveshwar-Mahadev-gosala-19
रति, मेधा,क्षमा, स्वाहा, श्रद्वा, शांति, धृति, स्मृति, कीर्ति, दीप्ति, क्रिया, कांति, तुष्टि, पुष्टि, संतति, दिशा और प्रदिशा (दिशाओं के कोने) सभी सदा कपिला की सेवा करती हैं। देवता, पितर, गन्धर्व, अप्सराएँ, समस्त लोक, द्वीप, समुद्र, गङ्गा आदि नदियाँ तथा अङ्गों और यज्ञों सहित समस्त वेद हर्षित होकर नाना प्रकार के मंत्रों से गौ की स्तुति किया करते हैं।