प्रजापतिश्च परमेष्ठी च शृङ्गे इन्द्र: शिरो अग्निर्ललाटं यम: कृकाटम् ॥१॥
सोमो राजा मस्तिष्को द्यौरुत्तरहनु: पृथिव्यधरहनु:॥२॥
विद्युज्जिह्वा मरुतो दंता रेवतीर्ग्रीवा: कृत्तिका स्कन्धा धर्मो वह:॥३॥
विश्वं वायु: स्वर्गो लोक: कृष्णद्रं विधरणी निवेष्य: ॥४॥
श्येन: क्रोडोऽन्तरिक्षं पाजस्यं बृहस्पति: ककुद् बृहती: कीकसा:॥५॥
देवानां पत्नी: पृष्टय उपसद: पर्शव:॥६॥
मित्रश्च वरुणश्चांसौ त्वष्टा चार्यमा च दोषणी महादेवो बाहू॥७॥
इन्द्राणी भसद् वायु: पुच्छं पवमानो बाला:॥८॥
ब्रह्म च क्षत्रं च श्रोणी बलमूरू॥९॥
प्रजापति और परमेष्ठी इसके सींग, इन्द्र सिर, अग्नि ललाट और यम गले की सन्धि है॥ नक्षत्रों के राजा चन्द्रमा मस्तिष्क, द्युलोक ऊपर का जबडा और पृथिवी नीचे का जबडा है॥ बिजली जीभ मरुत् देवता दाँत, रेवती नक्षत्र गला, कृतिका कन्धे और ग्रीष्म ऋतु कन्धे की हड्डी है॥ वायु देवता इसके समस्त अङ्ग है, इसका लोक स्वर्ग है और पृष्ठवंशकी हड्डी रूद्र है॥ श्येन पक्षी (बाज) इसकी छाती, अंतरिक्ष इसका बल, बृहस्पति इसका कूबड और बृहती नाम के छन्द इसकी छाती की हड्डियाँ है॥ देवाङ्गनाएँ इसकी पीठ और उनकी परिचारिकाएँ पसली की हड्डियाँ है॥ मित्र और वरूण नाम के देवता कन्धे है, त्वष्टा और अर्यमा हाथ है और महादेव इसकी भुजाएँ हैं॥ इन्द्रपत्नी इसका पिछला भाग है, वायु देवता इसकी पूँछ और पवमान इसके रोये हैं। ॥ ब्राह्मण और क्षत्रिय इसके नितम्ब और बल जाँघें हैं॥