क्रोधो वृक्कौ मन्युराण्डौ प्रजा शेप:॥१३॥

नदी सूत्री वर्षस्य पतय स्तना स्तनयित्नुरूध:॥१४॥

विश्वव्यचाश्चर्मौषधयो लोमानि नक्षत्राणि रूपम् ॥१५॥


देवजना गुदा मनुष्या आन्‍त्राण्यत्रा उदरम्॥१६॥

रक्षांसि लोहितमितरजना ऊबध्यम्॥१७॥

अभ्रं पीबो मज्जा निधनम्॥१८॥

अग्निरासनि उत्थितोऽश्विना॥१९॥

इन्द्र: प्राङ् तिष्ठन् दक्षिणा तिष्ठन् यम:॥२०॥

Deveshwar-Mahadev-gosala6

क्रोध, गुर्दे, मन्यु (शोक) अण्डकोष और प्रजा जननेन्द्रिय है॥ नदी गर्भाशय, वर्षा के अधिकारी देव स्तन हैं तथा गडगडाहट करने वाले बादल ही दुग्धकोष हैं॥ विश्वव्यापिनी शक्ति चमडी, औषधियाँ रोयें और नक्षत्र इसके रूप हैं॥ देवगण गुदा, मनुष्य आँतें एवं यक्ष पेट हैं॥ राक्षस रुधिर एवं दूसरे प्राणी आमाशय हैं॥ आकाश स्थूलता और मृत्यु मज्जा हैं ॥ बैठने के समय यह अग्निरूप है और उठते समय अश्विनी कुमार॥ पूर्व की ओर खडे होते समय इन्द्र और दक्षिण की ओर खडे होने पर यमराज हैं॥