मित्र ईक्षमाण आवृत्त आनन्द:॥२३॥
युज्यमानो वैश्वदेवो युक्त: प्रजापतिर्विमुक्त: सर्वम्॥२४॥
एतद् वै विश्वरूपं सर्वरूपं गोरूपम्॥२५॥
उपैनं विश्वरूपा: सर्वरूपा: पशवस्तिष्ठन्ति य एवं वेद॥२६॥
देखते समय यह मित्र देवता है और पीठ फेरते समय आनन्द है॥ हल अथवा गाडी में जोतने के समय यह (बैल) विश्वेदेव, जोत दिये जाने पर प्रजापति और जब खुला हुआ रहता है, उस समय यह सब कुछ बन जाता हैं॥ यही विश्वरूप अथवा सर्वरूप है और यही गौरूप भी हैं॥ जिसको इस विश्वरूप का यथार्थ ज्ञान होता हैं, उसके पास विविध आकार के अनेक पशु रहते हैं॥